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गैरसमज
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गैरसमज

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Год написания книги: 2021
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CHINCHOLIKAR VIKRAM
मगन एक अतमनस कशरवयन मलग आह, जल सवतच समरथय समजवन घणयस, मदतस कण सपडत नह आह… अरथत एक नरजन ठकण. 'गरसमझ' ह एक लहन मलच, कटबतल कणह कर शकत नह अश गषट करणयस सकषम असणयच तचय वढतय जणववषय एक लहन कथ आह, जयवर तचय शळतल कह मतर महणतत क तयचयत अशच असमनय मनसक कषमत आहत. य मलच नव मगन आह आण त य पहलय पसतकत बर वरषच आह. मगनल दन अटळ समसय असलयच दसत. पहल गषट महणज तच आई तचय मलचय सपत कषमत पहन घबरलल आह आण कवळ यवढच नवह तर तल मदत करत नसन तल सकरयपण नरश करत आह आण दसर महणज तल तचय अलकक, मनसक शकत वकसत करणयस मदत करणर शकषक सपडत नह. त तचय आईश य गषटबददल चरच करणयच परयतन करत, परत तल अगदच लहन परतसद मळत आण त ह बब तचय वडलन सगण यगय समजत नह करण तल महत आह क तच आई ह मजर करणर नह आण शवय मगनल तचय आईचय मरजत रहयच आह. मगनल वटत क त…
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